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दोहा

सरकारी---संकेत में, हुए इशारे मान प्रेस देश की बेचती, दिखती है ईमान ======================= ©----------------कुँवर हेमन्त चौहान

क्या लिख दूँ Kya Likh Dun

मैं कोमल हृदयी व्यथा लिखूँ, या लिख दूँ मन के अंगारे या भीड़ भरी सी दुनियाँ के, सब चलते फिरते बंजारे गद्दी पाने के लालच में, जनता को जिसने चूसा है उस राजतंत्र की प्रथा लिखूँ , या लोक तंत्र के हत्यारे करम सभी के एक ही जैसे, बस रूप बदल से जाते हैं ज्यों अपने मद की मस्ती में, वो झूम झूम के गाते हैं मैं ऐसे मद की बात लिखूँ, या मद के पीछे हत्यारे या   कोमल हृदयी व्यथा लिखूँ, या लिख दूँ मन के अंगारे ================= ©--कुँवर हेमन्त चौहान